सच में सच निकलने लगते हैं
कुछ ख़्वाब हम बुनने लगते हैं
Published in
Apr 30, 2022
सच में सच निकलने लगते हैं
कुछ ख़्वाब हम बुनने लगते हैं
जन्मों का सफर हो जैसे एक नज़र
यूँ ही नहीं आप अपने से लगने लगते हैं
रक़ीबों की भीड़ में हम भी एक रक़ीब हों
उम्मीदें कुछ खुद से भी रखने लगते हैं