ये आदतें

कहती हो कि आदतें अच्छी पाल रखी हैं तुमने

Saurabh
Literary Impulse

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कहती हो कि आदतें अच्छी पाल रखी हैं तुमने
फिर ये आदतें ही क्यूँ बुरी लग जाती हैं तुम्हें
बेवजह ही चुप रह जाना
बस यूँ ही कभी भी खुश हो जाना
डर को तुम्हारे हँसी में टाल देना
बेखबर लापरवाह ही सही
पर जिए जाना भी तो एक आदत ही है
पैर छूना भी तो एक आदत सी ही है
मतलब पता होता तो तुम्हारे न छू लेता
हाँ कभी बेमानी सी लगती हैं ये आदतें
मन का तुम्हारे क्या हाल है
तुम नहीं बताती तुम्हारी आदतें बता देती हैं
मन को जैसे भाँप जाती है ये आदतें
मुझको मैं और तुमको तुम बनाती हैं ये आदतें
फिर ये आदतें ही क्यूँ बुरी लग जाती हैं तुम्हें

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