बुलाते हो तो

कहाँ रुक पाता हूँ

Saurabh
Literary Impulse

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बुलाते हो तो कहाँ रुक पाता हूँ
मानता नहीं हूँ कि चला आता हूँ

सदियों से बदनाम हैं गलियाँ तेरी
कुछ दाग हर बार साथ ले आता हूँ

खुद में मसरूफ़ हूँ कि खुद से महरूम हूँ
जीता हूँ कुछ पल तो कुछ खो आता हूँ

गम-ए-जहाँ से निजात कहाँ गम एक ये भी
जीतता कहाँ हूँ जीता हुआ भी हार आता हूँ

कहानी लिखने चला हूँ किस्सा बन गया हूँ
सुनता कौन है यहाँ बस लिखे चला जाता हूँ

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