बच्चों का एक मेला है दुनिया मेरे आगे

होता है यहाँ रोज़ तमाशा मेरे आगे

Saurabh
Literary Impulse

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बच्चों का एक मेला है दुनिया मेरे आगे
होता है यहाँ रोज़ तमाशा मेरे आगे

एक खेल है तख़्त-ए-सिकंदर मेरे नज़दीक
एक बात है करिश्मा-ए-मसीहा मेरे आगे

सिवाय नाम नहीं कुछ इस दुनिया में मुझे मंज़ूर
सिवाय वहम नहीं कुछ किसी का होना मेरे आगे

ख़ाक में उड़ जाएँ हैं रेगिस्तान मेरे होते
घिसता है ज़बान ज़मीन पे दरिया मेरे आगे

मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे

सच कहते हो अकडू हूँ मगरूर हूँ क्यूँ न हूँ
बैठा है चाँद सा रोशन ये आईना मेरे आगे

बस देखिये हर बात पे कैसे फूल झरे हैं
रख दे कोई शराब का प्याला मेरे आगे

नफरत का गुमान गुज़रे है मैं रश्क से गुज़रा
कैसे कहूँ लो नाम न उनका मेरे आगे

ईमान मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र
काबा मेरे पीछे है शिवाला मेरे आगे

आशिक़ हूँ माशूक़-फरेबी है मेरा काम
मजनू को बुरा कहती है लैला मेरे आगे

खुश होते हैं पर मिलने पे यूँ मर भी नहीं जाते
आई तुम से दूर एक रात की तमन्ना मेरे आगे

है एक बहकता खूनी समुन्दर तो काश यही हो
आता है देखिये अभी क्या क्या मेरे आगे

हाथों में जान नहीं तो क्या आँखों में तो दम है
रहने दो अभी ये बोतल ये पैमाना मेरे आगे

हम-पेशा है हमराही है हमराज़ है मेरा
ग़ालिब को बुरा क्यूँ कहो अच्छा मेरे आगे

a ghazal by Ghalib simplified with contemporary words

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