कुछ फिसल कुछ संभल रहा हूँ
जैसे किसी सरहद पर चल रहा हूँ
हर पल में ख़ुशी हर पल गम यहाँ
जाने किस पल के लिए मचल रहा हूँ
हर कहानी में तू हर कहानी तुझसे ही
कहानी वही बस नाम बदल रहा हूँ
जान गया हूँ तुझमें कितनी है आतिश
बुत हूँ मोम का कि पिघल रहा हूँ
लोग आ गए हैं बस्ती सजने लगी है
और मैं हूँ कि कल निकल रहा हूँ