कुछ फिसल कुछ संभल रहा हूँ

Saurabh
Sep 19, 2023

कुछ फिसल कुछ संभल रहा हूँ
जैसे किसी सरहद पर चल रहा हूँ

हर पल में ख़ुशी हर पल गम यहाँ
जाने किस पल के लिए मचल रहा हूँ

हर कहानी में तू हर कहानी तुझसे ही
कहानी वही बस नाम बदल रहा हूँ

जान गया हूँ तुझमें कितनी है आतिश
बुत हूँ मोम का कि पिघल रहा हूँ

लोग आ गए हैं बस्ती सजने लगी है
और मैं हूँ कि कल निकल रहा हूँ

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